नई दिल्ली : लीगल अपडेट (स्पेशल डेस्क)
05 जनवरी 2023 : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि वसीयत के जरिये संपत्ति पर दावा करने वाले का दायित्व है कि वह वसीयत की सत्यता सिद्ध करे ।
सिर्फ इसलिए कि वसीयत पंजीकृत है, इसका मतलब यह नहीं है कि इसकी सच्चाई सिद्ध करने की कानूनी आवश्यकताओं का पालन नहीं किया जाएगा ।
जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक वसीयत को झूठा करार दिया और हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया । हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था, जिसने वसीयत के आधार पर प्रशासन पत्र प्रदान (एलओए) प्रदान करने का दावा खारिज कर दिया था । परिजनों ने मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी ।
इस आधार पर कोर्ट ने दिया फैसला !
कोर्ट ने कहा कि हमने पाया कि वसीयत करने वाले को लकवा मार गया था । उसका दाहिना हाथ और पैर काम नहीं कर रहे थे । वह मजबूत मनोस्थिति में नहीं था । वहीं विल पर किए गए दस्तखत कंपन के साथ किए गए थे, जो उसकी साधारण हैंडराइटिंग से मेल नहीं खा रहे थे । इसके अलावा दो गवाह, जिन्होंने वसीयत पर दस्तखत किए थे, वे भी वसीयतकर्ता के लिए अजनबी थे । इसके अलावा वसीयत पर दावा करने वाले ने वसीयत बनवाने में बहुत सक्रिय भाग लिया था और वसीयत बनने के 15 दन के बाद ही कर्ता का निधन हो गया । वहीं यह वसीयत लंबे समय तक अंधेरे में रही और उसके बारे में किसी को पता नहीं था । वसीयत पर यह भी कहीं स्पष्ट नहीं था कि बनाने वाले ने अपने प्राकृतिक उत्तराधिकारियों (बेटियों) को संपत्ति से बेदखल क्यों किया ।
बेटियों ने कहा – वसीयत फर्जी है !
याचिकाकर्ता के पिता ईएस पिल्लै की 1978 में मृत्यु हो गई थी । वह अपने पीछे एक वसीयत छोड़ गए थे, जो दो गवाहों के सामने बनाई गई थी । वसीयतकर्ता के एक पुत्र और दो पुत्रियां थीं । पुत्र की मृत्यु 1989 में हो गई । वह अपने पीछे पत्नी और दो बच्चों को छोड़ गए । पिता की मृत्यु के बाद पुत्रियों ने संपत्ति के बंटवारे के लिए मुकदमा दायर किया । इसके जवाब में उनकी भाभी ने संपत्ति के लिए एलओए प्रदान करने के लिए आवेदन किया । पुत्रियों ने कहाकि वसीयत फर्जी है, क्योंकि लकवे के कारण पिता बिस्तर पर थे और वसीयत बना ही नहीं सकते थे । ऐसे में वसीयत शक के दायरे में है, इसलिए इसे निरस्त किया जाए ।
ट्रायल कोर्ट ने पुत्रियों के दावे को सही माना और वसीयत खारिज कर दी ।