सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली के विरुद्ध राजभाषा हिंदी का अनादर करने के सम्बन्ध में गृह मंत्रालय से की गई कार्यवाही की मांग !
सूचना आयुक्त सुरेश चंद्रा, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली के विरुद्ध राजभाषा हिंदी का अनादर करने के सम्बन्ध में गृह मंत्रालय से की गई कार्यवाही की मांग !
उत्तराखण्ड : काशीपुर
11 जून 2022 : उत्तराखण्ड के मशहूर उधोगपति एवं सूचनाधिकार कार्यकर्ता नीरज माथुर ने सूचना आयुक्त, सुरेश चंद्रा, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली के विरुद्ध राजभाषा हिंदी का अनादर करने के लिए कार्यवाही किये जाने की गृह मंत्रालय, भारत सरकार से न्यायोचित मांग की है ।
प्राप्त जानकारी के अनुसार RTI कार्यकर्ता नीरज माथुर ने अपनी 2nd अपील हिन्दी भाषा में केंद्रीय सूचना आयोग को प्रस्तुत की थी जिसकी सुनवाई सूचना आयुक्त, सुरेश चंद्रा कर रहे थे, RTI कार्यकर्ता नीरज माथुर ने अपने एक लिखित पत्र में यह मांग की थी कि राजभाषा हिन्दी पत्राचार किया जाए, परन्तु सूचना आयुक्त, सुरेश चंद्रा ने नियम कानूनों की अनदेखी कर अपने सभी पत्र और आर्डर अंग्रेजी भाषा में ही प्रेषित किये जिसको RTI कार्यकर्ता नीरज माथुर ने राजभाषा हिन्दी का अपमान और अनादर माना ।
राजभाषा हिन्दी का अपमान, भारत का अपमान, देश की सनातन संस्कृति का तथा सम्पूर्ण भारतीय जनमानस का अपमान है ।
आखिर किसी विदेशी भाषा का किसी स्वतंत्र राष्ट्र के राजकाज और शिक्षा की भाषा होना सांस्कृतिक दासता नहीं तो और क्या है ?
अगर नियम कानूनों को देखा जाए तो हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया है और हिंदी पत्र का उत्तर हिंदी में ही दिया जाए, इस सम्बन्ध में अनेको बार केंद्रीय सरकार के वरिष्ठ अधिकारियो द्वारा निर्देश / आदेश जारी किये जाते रहे है, किन्तु शिकायतकर्ता के प्रकरण में इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया है, और श्री सुरेश चंद्रा, सूचना आयुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली ने शिकायतकर्ता के हिंदी पत्र का उत्तर अंग्रेजी भाषा में प्रेषित किया है ।
संविधान के अनुच्छेद 343 के तहत भारत संघ की राजभाषा हिन्दी है और अनुच्छेद 344 के तहत अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को प्रतिष्ठापित करना भारत संघ का कर्तव्य है, और अनुच्छेद 351 के तहत् हिन्दी का विकास करना भारत संघ का कर्तव्य है ।
अगर नियमों को देखा जाये तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 (1) के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी है, राजभाषा नियम 1976 में बनायें गये नियम 2 के ‘क’ वर्ग में उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली भी आते है एवं इसके अन्तर्गत केन्द्र सरकार के सभी कार्यालय, सरकार द्वारा नियुक्त ट्रिव्यूनल एवं इनके नियंत्रण वाले निगम या कंपनीया भी शामिल है ।
श्री सुरेश चंद्रा, सूचना आयुक्त, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली ने हिंदी पत्र का जानबूझ कर उत्तर अंग्रेजी भाषा में प्रेषित कर नियमो, कानून का उपहास किया है और शासनादेश संख्या – फा0सं0-12019/1/2011-रा0भा0 भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, नई दिल्ली दिनांक – 24.02.2019 व शासनादेश संख्या-12019/03/2016-रा0भा0(शिका)/विविध-1, भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, नई दिल्ली दिनांक – 29-02-2016 का भी उल्लंघन किया है ।
अब देखना यह हैं कि गृह मंत्रालय हिन्दी भाषा के अपमान / अनादर पर क्या कार्यवाही सूचना आयुक्त, सुरेश चंद्रा, केन्द्रीय सूचना आयोग, नई दिल्ली के विरुद्ध करता हैं ।
नियम तो यही कहता हैं कि केंद्रीय सरकार के कर्मचारी हिन्दी भाषा में प्राप्त पत्र का उत्तर हिन्दी में ही देंगे ।
सूचनाधिकार कार्यकर्ता नीरज माथुर ने यह भी बताया कि वह इस प्रकरण में न्याय प्राप्त करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार महोदय को एक PIL एवं महामहिम राष्ट्रपति महोदय को सम्बोधित एक ज्ञापन अतिशीघ्र प्रस्तुत करेंगे ।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने सुरेश चंद्रा को आवेदन किए बगैर ही बनाया हैं सूचना आयुक्त इससे पूर्व वह कानून सचिव के पद पर कार्यरत थे ।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा इसकी वेबसाइट पर अपलोड की गई फाइलों का अध्ययन करने से यह खुलासा हुआ है अनेक आरटीआई कार्यकर्ताओं ने सुरेश चंद्रा को केंद्रीय सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति को एक ‘मनमानी प्रक्रिया’ करार दिया है क्योंकि उन्होंने इस पद के लिए आवेदन नहीं किया था ।
आरटीआई एक्ट के तहत केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) सर्वोच्च अपीलीय संस्था है. मालूम हो कि बीते 20 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली चयन समिति की बैठक में चार लोगों की सिफारिश सूचना आयुक्त पद पर नियुक्ति के लिए की गई थी. इस समिति में मोदी के अलावा लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और वित्त मंत्री अरुण जेटली थे ।
इसके बाद एक जनवरी, 2019 को सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्त होने वालों में पूर्व आईएफएस अधिकारी यशवर्द्धन कुमार सिन्हा, पूर्व आईआरएस अधिकारी वनजा एन. सरना, पूर्व आईएएस अधिकारी नीरज कुमार गुप्ता और पूर्व विधि सचिव सुरेश चंद्रा शामिल हैं ।
हालांकि खास बात ये है कि सुरेश चंद्रा ने इस पद के लिए आवेदन ही नहीं किया था. इसके बावजूद उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया है. डीओपीटी द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक सूचना आयुक्त के पद के लिए कुल 280 लोगों ने आवेदन दायर किया था. इस सूची में सुरेश चंद्रा का नाम शामिल नहीं है ।
सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति के लिए 27 जुलाई 2018 को विज्ञापन जारी किए गए थे. इसके बाद आवेदन करने वालों में से उचित उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक सर्च कमेटी बनाई गई थी ।
सर्च कमेटी के सदस्य कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा, प्रधानमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव पीके मिश्रा, डीओपीटी के सचिव सी. चंद्रमौली, औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के सचिव रमेश अभिषेक, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अमित खरे और दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ के निदेश मनोज पांडा शामिल थे ।
सर्च कमेटी के अध्यक्ष कैबिनेट सचिव पीके सिन्हा थे. सूचना आयुक्त के पद पर लोगों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए सर्च कमेटी की दो मीटिंग, 28 सितंबर 2018 और 24 नवंबर 2018 को हुई थी ।
24 नवंबर को हुई अंतिम बैठक में सर्च कमेटी ने कुल 14 लोगों के नाम को शॉर्टलिस्ट किया था जिसमें से 13 लोग पूर्व नौकरशाह (पूर्व ब्यूरोक्रैट या सरकारी बाबू) थे और सिर्फ एक इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज थे ।
इतना ही नहीं, समिति ने जिन 14 लोगों के नाम की सिफारिश की थी उसमें से दो लोग- सुरेश चंद्रा और अमीसिंग लुइखम- का नाम आवेदनकर्ताओं में शामिल नहीं हैं, इसका मतलब है कि सर्च कमेटी ने इन नामों की सिफारिश अपने तरफ से की है ।
हालांकि 27 अगस्त, 2018 को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में डीओपीटी ने खुद कहा था कि जिन लोगों ने पद के लिए आवेदन दायर किया है, उनमें से ही सर्च कमेटी द्वारा लोगों को शॉर्टलिस्ट किया जाएगा ।
सर्च कमेटी की मिनट्स ऑफ मीटिंग में लिखा है, ‘सर्च कमेटी ने 28/09/2018 को अपनी पहली बैठक की. सर्च कमेटी ने सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत निर्धारित मापदंडों पर ध्यान दिया और आवेदकों की सूची पर विस्तार से चर्चा की. सर्च कमेटी ने यह भी निर्देशित किया कि उसके द्वारा और अधिक विचार करने के लिए आवेदकों की विस्तृत प्रोफाइल तैयार / संकलित किए जा सकते हैं. सर्च कमेटी के सदस्यों से यह भी अनुरोध किया गया कि वे अगली बैठक में विचार के लिए अन्य उपयुक्त उम्मीदवारों के नाम, यदि कोई हो, का सुझाव दें ।
हालांकि पारदर्शिता और आरटीआई की दिशा में काम कर रहे कार्यकर्ताओं का कहना है कि सर्च कमेटी के पास ऐसा कोई भी अधिकार नहीं है कि वो अपनी तरफ से नामों का सुझाव दें ।
आरटीआई को लेकर काम करने वाले सूचनाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा, ‘अगर इन्हें अपनी तरफ से ही नियुक्ति करने का मन है तो फिर आवेदन किसलिए मंगाए जाते हैं, आवेदन की आखिरी तारीख क्यों तय की जाती है. कानून में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है, हमें नहीं पता कि अपनी तरफ से नामोंं का सुझाव देने की शक्तियां यह कहां से ले रहे हैं ।
सर्च कमेटी की मिनट्स ऑफ मीटिंग में आगे लिखा है, ’24/11/2018 को सर्च कमेटी की फिर से बैठक हुई. डीओपीटी द्वारा प्राप्त आवेदनों के अलावा, सर्च कमेटी ने कार्यरत/रिटायर्ड सिविल सर्वेंट्स के नाम के साथ-साथ सर्च कमेटी के सदस्यों द्वारा सुझाए गए अन्य नामों पर भी विचार किया. समग्र अनुभव प्रोफाइल के साथ-साथ पद के लिए उपयुक्तता पर विचार करने के बाद सर्च कमेटी ने निम्नलिखित लोगों को शॉर्टलिस्ट किया है ।
आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये कानूनी रूप से सही नहीं है कि किसी ऐसे व्यक्ति को नियुक्त किया जाए जिसने आवेदन ही न किया हो. इससे सभी आवेदकों के बराबरी के अधिकार का उल्लंघन होता है ।
‘सर्च कमेटी ने डीओपीटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामें के खिलाफ जाकर आवेदकों की सूची से बाहर के लोगों को शॉर्टलिस्ट किया है, हमें इस तरह की मनमानी प्रक्रिया को रोकने के लिए हर स्तर पर पारदर्शिता की जरूरत है और जनता को इसकी जांच करनी चाहिए, पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद इस सूचना को जारी करने का क्या मतलब है ?’